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Thursday, 19 March 2020

ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया, अंगना में फिर आजा रे.....


गौरैया या चिरैया जिसने हमारी बचपन की स्मृति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैl गौरैया जो  कभी दीवार पर लगे आईने में चोंच बजाती थी, तो कभी फुदक कर घर के किसी कोने में बैठ जाती थी, जिसकी चीं-चीं की आवाज लगभग आज भी छोटे कस्बों में सुनाई देती है। बचपन में दादी-नानी या माँ जब चिड़ा-चिड़ी की कहानी सुनाती थी तो गौरैया की ही छबि हमारे दिमाग में बनती थी l गौरैया मानव परिवार का हिस्सा है तथा भारतीय संस्कृति और सभ्यता में इसका बहुत महत्व है, इसीलिए इसे घर में रहने वाली चिड़िया (हाउस स्पेरो) कहा जाता हैl

गौरैया 'पासेराडेई' परिवार की सदस्य है, विश्वभर में गौरैया की 26 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 5 भारत में देखने को मिलती हैं। इनकी लम्बाई 12 से 16 सेंटीमीटर होती है तथा इनका वजन 25 से 32 ग्राम तक होता है। एक समय में इसके कम से कम तीन बच्चे होते हैं। गौरेया अधिकतर झुंड में ही रहती है। भोजन की तलाश में गौरैया का झुंड अधिकतर दो मील की दूरी तक जाता है।
गौरैया आजकल अपने अस्तित्व के लिए मनुष्यों और अपने आसपास के वातावरण से काफ़ी जद्दोजहद कर रही है।

रिपोर्ट्स के अनुसार गौरैया की संख्या में करीब 60 फीसदी तक कमी गई है, गौरैया बड़े शहरों में तो दिखती ही नहीं है, छोटे कस्बों में तो यह आसानी से देखी भी जा सकती है, किन्तु यहाँ भी इस पर संकट के बादल मंडरा रहे है। इसी बात से लोगों को जागरूक करने के लिए सर्वप्रथम २०१० में २० मार्च को विश्व गोरैया दिवस मनाया गया था l गोरैया जिसे देखते हुए हम छोटे से बड़े हुए उसके संरक्षण के लिए एक दिवस घोषित कर दिया जायेगा, यह वाकई चिंता का विषय है l देश में मौजूद पक्षियों की 1200 प्रजातियों में से 87 संकटग्रस्त की सूची में गौरैया शामिल हैं l

गौरैया की कमी तो सबने महसूस की है लेकिन इस कमी के जिम्मेदर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हम ही है

गौरैया की संख्या में कमी होने के कई कारण है; जैसे- बढ़ता प्रदूषण, पेड़- पौधों की संख्या में कमी, आधुनिकता के दौर में पक्के मकान भी गोरैया की संख्या में कमी का मुख्य कारण  है-पक्के मकानो में गौरैया को अपना घोंसला बनाने की जगह नहीं मिलती, मिलती भी है तो लोग घोंसला बनाने नहीं देते, आजकल गौरैया ग्रामीण क्षेत्रों में भी सुरक्षित नहीं है क्योंकि मकानों की बनावट में वहां भी बदलाव का क्रम तेजी से जारी है, जिससे गौरैया का आवासीय ह्रास हुआ है, शहरों का तापमान लगातार बढ़ रहा है, गौरैया ज्यादा तापमान सहन नहीं कर पाती, गौरैया के बच्चों का भोजन शुरूआती लगभग पन्द्रह दिनों तक सिर्फ कीड़े-मकोड़े ही होता है, लेकिन आजकल लोग खेतों से लेकर अपने गमले के पौधों में भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते हैं, जिससे ना तो पौधों को कीड़े लगते हैं और ना ही इस पक्षी का समुचित भोजन पनप पाता है,अनाज में कीटनाशकों के इस्तेमाल, मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगें भी गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं, इनसे निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक किरणें उनकी प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव डालती हैं तथा उनका मार्ग भटकाती है l

हम गौरैया को क्यों बचाये? इस प्रश्न से मानवीयता नहीं झलकती; बल्कि हमें चिंतित होना चाहिए की हमारे आसपास वातावरण में कुछ गड़बड़ चल रही हैl हमें गौरैया के संरक्षण एवं जागरूकता पैदा किए जाने की नितांत आवश्यकता है, क्योंकि यही पक्षी है जिसे देखकर, जिसकी चहचहाट सुनकर हम बड़े हुए है, जो की पारिस्थितिक तंत्र के एक हिस्से के रूप में हमारे पर्यावरण को बेहतर बनाने में अपना योगदान देती हैl हम गौरैया के संरक्षण के लिए अपने स्तर पर निम्न उपाय कर सकते है- गर्मी के दिनों में अपने घर की छत पर एक बर्तन में पानी भरकर रखें, कीटनाशकों का कम प्रयोग, गौरैया के लिए नमक हानिकारण होता है अतः उन्हें नमक वाला खाना नहीं डाले, अगर वह हमारे घर में घोंसला बनाए, तो उसे बनाने दें और प्रजनन के समय उनके अंडों की सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए, विभिन्न स्थानों पर पक्षी संरक्षण केंद्र खुलना चाहिये, किलर चाइनीज़ मांझों पर पूर्णतः प्रतिबंध लगना चाहिये

गौरैया को घास के बीज काफी पसंद होते हैं जो शहर की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से मिल जाते हैंl
हमारी छोटी-सी कोशिश गौरैया को जीवनदान दे सकती है,गौरैया से हमारा बचपन का रिश्ता है, हमें गौरैया को फिर से बुलाना होगा, उसे संरक्षण देना होगा और परिवार का सदस्य मानना होगा, तभी हम हमारी आने वाली पीढ़ी को हमारी बचपन की दोस्त से मिला पाएंगे तथा उनकी मित्रता भी करा पाएंगेl उसे बस हमारा प्यार और थोड़ी-सी फिक्र ही तो चाहिए साथ ही रहने को थोड़ी-सी जगह, हमारे घर और हमारे दिल में...



नमन पटेल 

टाइटल- स्वानंद किरकिरे जी के गीत से 
फोटो- कालूराम शर्मा जी से साभार 

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